गुरुवार 13 नवंबर 2025 - 18:54
रहबरे इंकेलाब की इमामत में मस्जिद हमेशा नौजवानों से क्यों भरी रहती थी?

हौज़ा / रहबरे इंकेलाब हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई ने अपने ख़ुत्बे में इमाम-ए-जमात के तरीक़े और आम लोगों से राब्ते की अहमियत पर रौशनी डालते हुए फ़रमाया कि नौजवानों और आवाम को मस्जिद की तरफ़ खींचने का राज़ ख़ुश अख़्लाक़ी, दिलसोज़ी और मुहब्बत भरा रवैया है न कि हुक्म चलाना और उनसे फ़ासला पैदा करना।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , रहबरे इंकेलाब ने फौज के अक़ीदती व सियासी इदारों के ज़िम्मेदारान से ख़िताब करते हुए फ़रमाया,फ़र्ज़ करें कि आप किसी मुहल्ले की मस्जिद के इमाम-ए-जमात हैं, अगर आपका रवैया हाकिमाना और झिड़कने वाला हो तो लोग आपकी नमाज़ में नहीं आएंगे। हमेशा वही मस्जिदें ज़्यादा आबाद रहती हैं जिनके इमाम-ए-जमात अवामी, ख़ुश-अख़लाक़ और दिलसोज़ होते हैं।

उन्होंने कहा,इमाम-ए-जमात को चाहिए कि आम लोगों के साथ ख़ुश-रूई से पेश आए उनके सवालों के जवाब दे, अगर माली मदद न कर सके तो कम से कम अख़्लाक़ से उनके दुख को कम करे।

रहबरे इंकेलाब ने अपने उस ज़माने की तरफ़ इशारा किया जब वह ख़ुद इमाम-ए-जमात हुआ करते थे उन्होंने एक वाक़िए का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया,मैं जब नमाज़ ख़त्म करता तो लोगों की तरफ़ मुतवज्जह होकर बैठ जाता। एक दिन एक नौजवान, जिसका लिबास और अंदाज़ उस ज़माने के फ़ैशन के मुताबिक़ था, सफ़-ए-अव्वल में आ बैठा। उसने आकर कहा,आक़ा! क्या मेरे लिए सफ़-ए-अव्वल में बैठना दुरुस्त है? मैंने कहा,बिल्कुल, क्यों नहीं?

कुछ लोगों ने उसे बुरा कहा तो मैंने कहा,यह हुज़ूर बिला-वजह कहते हैं!

वह नौजवान फिर कभी उस मस्जिद से जुदा न हुआ।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने फ़रमाया कि मेरी मस्जिद में नमाज़ियों की अक्सरियत नौजवानों की थी, हालांकि मेरे पास न कोई ख़ास दुनियावी मक़ाम था और न कोई ग़ैर-मामूली रूहानी सरमाया, लेकिन मैं आम लोगों के दरमियान था।

उन्होंने आगे फ़रमाया,यही उसूल फौज, पुलिस और हर इदारे में भी लागू होता है। अगर हम आम लोगों के दरमियान हों तो उन्हें रियाकारी या दिखावे की ज़रूरत नहीं पड़ती।

तारीख़-ए-बयान: 23 दी 1383 हिजरी शम्सी (13 जनवरी 2005)

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha